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कविता

‘बूढ़े बच्चों’ के नन्हें हाथ

असलम हसन


'बूढ़े बच्चों' के नन्हें हाथ
अपनी बदरंग दुनिया में बुनते हैं
ताना-बाना
रंग-बिरंगे धागों का
जिंदगी के मासूम बेलबूटों से वे सजाते हैं
कालीन का बदन
और आँखों की अपनी रोशनी से भर देते हैं
उसका दामन
और जमीन पर कभी न पड़ने वाले
नाजुक पाँवों की खातिर
संगमरमरी फर्श पर बिछाते हैं
मखमली आराम
'बूढ़े बच्चों' के नन्हें हाथ...

(कालीन उद्योग में कार्य करने वाले समय से पहले बूढ़े हो चुके बच्चों के नाम)

 


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